राजस्थान की प्रमुख प्रशस्तियाँ एवं शिलालेख – Major Inscriptions & Eulogies of Rajasthan
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राजस्थान की प्रमुख प्रशस्तियाँ एवं शिलालेख – Major Inscriptions & Eulogies of Rajasthan |
परिचय :-
क्या आप जानते हैं कि राजस्थान की प्रमुख प्रशस्तियाँ एवं शिलालेख न केवल इतिहास के साक्ष्य हैं बल्कि तत्कालीन समाज, धर्म और प्रशासन की झलक भी प्रस्तुत करते हैं? राजस्थान का इतिहास इन शिलालेखों और प्रशस्तियों के बिना अधूरा है। ये पत्थरों पर उकेरे गए शब्द आज भी हमें उस समय की गौरवशाली परंपराओं और राजाओं की उपलब्धियों से परिचित कराते हैं।
शिलालेख और प्रशस्ति में अंतर (Difference between inscription and Eulogies)
- शिलालेख (Inscriptions):- पत्थरों, धातुओं या मंदिरों की दीवारों पर खुदे हुए लेख।
- प्रशस्ति (Prashasti): किसी राजा या शासक की उपलब्धियों का गुणगान करने वाले लेख।
राजस्थान की प्रमुख प्रशस्तियाँ (Major Prashastis of Rajasthan)
1. राज प्रशस्ति (Raj Prashasti) – भारत का सबसे बड़ा शिलालेख
यह प्रशस्ति न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत में सबसे बड़ी प्रशस्ति मानी जाती है।
स्थान: राजसमंद झील की पाल, राजनगर (उदयपुर के पास)।
काल: 1676 ई.।
शासक: महाराणा राज सिंह प्रथम (Mewar Dynasty)।
लेखक: रणछोड़ भट्ट तैलंग।
विशेषता: यह 25 बड़ी काली शिलाओं (पत्थरों) पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है, जिसमें 1917 श्लोक हैं।
मुख्य विषय: इसमें मेवाड़ के गुहिल वंश की उत्पत्ति से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक का विस्तृत इतिहास है, जिसमें बप्पा रावल से लेकर राज सिंह की मुगलों के विरुद्ध नीतियों और उनके विवाह की जानकारी भी शामिल है। राजसमंद झील के निर्माण का वर्णन भी इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
(आप राजसमंद झील और उसके इतिहास के बारे में अधिक जानकारी
Wikipedia पर राजसमंद झील पर पढ़ सकते हैं।)
2. कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति (Kirti Stambha Prashasti)
विजय के प्रतीक, कीर्तिस्तंभ में लगी यह प्रशस्ति मेवाड़ के महान शासक के बारे में बताती है।
स्थान: चित्तौड़गढ़ दुर्ग, कीर्तिस्तंभ (विजय स्तंभ)
काल: 1460 ई.।
शासक: महाराणा कुंभा (Mewar Dynasty)।
लेखक: अत्रि भट्ट ने शुरू किया और उनके पुत्र महेश भट्ट ने पूरा किया।
मुख्य विषय: इसमें कुंभा की उपाधियों, उनकी साहित्यिक रचनाओं (जैसे टीकाएँ), और उनकी विजयो(जैसे मालवा के महमूद खिलजी पर विजय) का उल्लेख है। यह कुंभा के स्थापत्य कला के प्रति प्रेम का भी प्रमाण है।
3. रायसिंह प्रशस्ति (Rai Singh Prashasti)
यह प्रशस्ति बीकानेर के राठौड़ वंश की जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत है।
स्थान: बीकानेर दुर्ग (जूनागढ़) के मुख्य द्वार पर।
काल: 1594 ई.।
शासक: महाराजा राय सिंह (Rathore Dynasty)।
लेखक: जैता (Jaita)।
मुख्य विषय: इसमें जूनागढ़ दुर्ग के निर्माण की तिथि और बीकानेर के राठौड़ वंश के शासकों—राव बीका से लेकर राय सिंह तक—की उपलब्धियाँ शामिल हैं। इसमें राय सिंह की मुगल सेवा और उनके युद्धों का भी वर्णन है।
4. जगन्नाथ राय प्रशस्ति (Jagannath Rai Prashasti)
स्थान: उदयपुर, जगन्नाथ राय (जगदीश) मंदिर।
काल: 1652 ई.।
शासक: महाराणा जगत सिंह प्रथम।
लेखक: कृष्ण भट्ट।
मुख्य विषय: इसमें मेवाड़ के शासकों की वंशावली और मुगलों के साथ उनके संबंधों की जानकारी मिलती है। यह मंदिर की स्थापना और महाराणा जगत सिंह के दान-पुण्य का विस्तृत विवरण भी प्रस्तुत करती है।
राजस्थान के शिलालेख (Inscriptions of Rajasthan)
घोसुंडी शिलालेख (Ghosundi Inscription)
स्थान: चित्तौड़गढ़ के पास, नगरी गाँव।
काल: द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व।
महत्व: यह राजस्थान में भागवत (वैष्णव) धर्म के प्रचार का सबसे प्राचीन अभिलेखीय साक्ष्य है। इसमें गजवंश के राजा सर्वतात द्वारा अश्वमेध यज्ञ करने और वासुदेव-संकर्षण (कृष्ण और बलराम) के पूजा स्थल की चारदीवारी बनाने का उल्लेख मिलता है, जो धार्मिक इतिहास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
बिजोलिया शिलालेख (Bijolia Inscription)
स्थान: भीलवाड़ा, बिजोलिया, पार्श्वनाथ जैन मंदिर।
काल: 1170 ई.।
महत्व: यह अजमेर के चौहान राजवंश के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह शिलालेख चौहानों की उत्पत्ति को वत्सगोत्रीय ब्राह्मण से बताता है और उनके संस्थापक वासुदेव चौहान का उल्लेख करता है। इसमें सांभर (सपादलक्ष) के चौहानों की वंशावली और कई प्राचीन स्थानों (जैसे बिजोलिया का नाम विंध्यावल्ली) के नाम भी मिलते हैं।
मानमौरी शिलालेख (Manmori Inscription)
स्थान: चित्तौड़गढ़, मानसरोवर झील के तट पर।
काल: 713 ई.।
महत्व: इसमें मौर्यवंशी राजा मान और अन्य चार मौर्य शासकों का उल्लेख है। यह शिलालेख इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड को मिला था, जिन्होंने इसकी प्रतिलिपि बनाई थी लेकिन मूल को भारी होने के कारण समुद्र में फेंक दिया था।
चिरवा का शिलालेख (Chirwa Inscription)
स्थान: उदयपुर, चिरवा गाँव के मंदिर में।
काल: 1273 ई.।
महत्व: यह मेवाड़ के गुहिल (रावल शाखा) शासकों की वंशावली और उनके समय की सामाजिक तथा धार्मिक व्यवस्थाओं पर प्रकाश डालता है। यह रावल समर सिंह के समय का है।
बड़ली का शिलालेख (Badli Inscription)
स्थान: अजमेर के पास, बड़ली गाँव (वर्तमान में अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित)।
काल: 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व या उससे भी पहले (तिथि विवादित)।
महत्व: इसे राजस्थान के सबसे पुराने तिथि युक्त शिलालेखों में से एक माना जाता है और यह जैन धर्म के प्रसार से संबंधित है।
हर्षनाथ का शिलालेख (Harshnath Inscription)
स्थान: सीकर, हर्ष मंदिर।
काल: 973 ई.।
महत्व: इसमें चौहान राजा विग्रहराज द्वितीय और उनके पूर्वजों की जानकारी मिलती है, जो चौहान वंश के प्रारंभिक इतिहास और तत्कालीन कला-स्थापत्य को जानने में सहायक है।
कणसवा का शिलालेख (Kanswa Inscription)
स्थान: कणसवा (कोटा)।
काल: 738 ई.।
महत्व: यह शिलालेख मौर्यवंशी शासक धवल का उल्लेख करता है, जो इस क्षेत्र में मौर्यों की उपस्थिति को प्रमाणित करता है।
सारांश :-
क्रमांक | नाम / Name | प्रकार | स्थान | काल / Period | शासक / Dynasty | लेखक / Author | प्रमुख विषय / महत्व |
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1 | राज प्रशस्ति (Raj Prashasti) | प्रशस्ति | राजसमंद झील, राजनगर (उदयपुर) | 1676 ई. | महाराणा राज सिंह प्रथम (मेवाड़) | रणछोड़ भट्ट तैलंग | भारत की सबसे बड़ी प्रशस्ति; 25 पत्थरों पर 1917 श्लोक; मेवाड़ वंश की वंशावली और राजसमंद झील का विवरण। |
2 | कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति (Kirti Stambha Prashasti) | प्रशस्ति | चित्तौड़गढ़ दुर्ग | 1460 ई. | महाराणा कुंभा | अत्रि भट्ट, महेश भट्ट | कुंभा की विजयों, स्थापत्य और साहित्यिक योगदान का उल्लेख। |
3 | रायसिंह प्रशस्ति (Rai Singh Prashasti) | प्रशस्ति | बीकानेर (जूनागढ़ दुर्ग) | 1594 ई. | महाराजा राय सिंह (राठौड़ वंश) | जैता | बीकानेर दुर्ग निर्माण, वंशावली और मुगलों से संबंधों का वर्णन। |
4 | जगन्नाथ राय प्रशस्ति (Jagannath Rai Prashasti) | प्रशस्ति | जगदीश मंदिर, उदयपुर | 1652 ई. | महाराणा जगत सिंह प्रथम | कृष्ण भट्ट | मंदिर स्थापना, दान-पुण्य और मुगल संबंधों का उल्लेख। |
5 | घोसुण्डी शिलालेख (Ghosundi Inscription) | शिलालेख | नगरी, चित्तौड़गढ़ | द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व | गजवंश | — | वासुदेव-संकर्षण पूजा व अश्वमेध यज्ञ का उल्लेख; वैष्णव धर्म का प्रारंभिक प्रमाण। |
6 | बिजोलिया शिलालेख (Bijolia Inscription) | शिलालेख | बिजोलिया, भीलवाड़ा | 1170 ई. | चौहान वंश | — | चौहान वंश की उत्पत्ति, सांभर के राजाओं और नगरों का विवरण। |
7 | मानमौरी शिलालेख (Manmori Inscription) | शिलालेख | मानसरोवर झील, चित्तौड़गढ़ | 713 ई. | मौर्य वंश | — | राजा मान और अन्य मौर्य शासकों का उल्लेख; प्रारंभिक मौर्य शासन का प्रमाण। |
8 | चिरवा शिलालेख (Chirwa Inscription) | शिलालेख | चिरवा, उदयपुर | 1273 ई. | गुहिल (रावल शाखा) | — | रावल समर सिंह के शासनकाल का विवरण; सामाजिक व धार्मिक स्थिति। |
9 | बड़ली शिलालेख (Badli Inscription) | शिलालेख | बड़ली गाँव, अजमेर | 5वीं शताब्दी ई.पू. (विवादित) | — | — | राजस्थान का सबसे प्राचीन जैन शिलालेख; अजमेर संग्रहालय में संरक्षित। |
10 | हर्षनाथ शिलालेख (Harshnath Inscription) | शिलालेख | हर्ष मंदिर, सीकर | 973 ई. | चौहान वंश | — | विग्रहराज द्वितीय और पूर्वजों की जानकारी; स्थापत्य कला का प्रमाण। |
11 | कणसवा शिलालेख (Kanswa Inscription) | शिलालेख | कणसवा, कोटा | 738 ई. | मौर्य वंश | — | शासक धवल का उल्लेख; मौर्यों की उपस्थिति का प्रमाण। |
Frequently Asked Questions (FAQ)
Q1: “शिलालेख” और “प्रशस्ति” में क्या अंतर है?
उत्तर: “शिलालेख” (Inscription) वह लिखित लेख है जिसे पत्थर, स्तंभ, दीवार आदि पर उकेरा गया हो। “प्रशस्ति” (Eulogy) विशेष रूप से किसी राजा/शासक या भव्य कार्य की स्तुति में लिखी गई काव्यात्मक अभिव्यक्ति होती है।
Q2: राजस्थान का सबसे प्राचीन अभिलेख कौन सा माना जाता है?
उत्तर: बड़ली अभिलेख को कभी-कभी राजस्थान का सबसे प्राचीन अभिलेख माना जाता है।
Q3: राजस्थान के अभिलेखों की भाषा और लिपि क्या-क्या हैं?
उत्तर: प्रमुख भाषा संस्कृत है, लिपि ब्राह्मी, गुप्त आदि उपयोग हुई हैं।
Q4 : अभिलेखों का अध्ययन करने वाली विधा क्या है?
उत्तर: अभिलेखों का अध्ययन एपिग्राफी (Epigraphy) कहलाता है।
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