राजस्थान के किले व दुर्ग Rajasthan ke Kile Durg (forts) ---
![]() |
please rotate your device to landscape mode.... |
किला / दुर्ग |
स्थान |
विशेष विवरण |
---|---|---|
चित्तौड़ का किला |
चित्तौड़गढ़ |
आचार्य चाणक्य द्वारा बताई गयी चार कोटियों तथा आचार्य शक द्वारा बताई गयी नौ दुर्ग कोटियों में से केवल एक कोटि ‘धन्व दुर्ग' को छोड़कर चित्तौड़गढ़ को सभी कोटियों में रखा जा सकता है। इसी कारण राजस्थान में कहावत कही जाती है कि 'गढ़ तो गढ़ चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़या।' चित्तौडदुर्ग को दुर्गों का सिरमौर कहा गया है। राजस्थान के किलों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा चित्तौड़ का किला है। 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने रावल रतनसिंह को मारकर इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इसे अपने पुत्र के नाम पर इसका नाम खिज़ाबाद रख दिया। किंतु 1326 ई. में गुहिलो की राणा शाखा के राणा हम्मीर ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया | यह दुर्ग मेसा के पठार पर स्थित है।इस दुर्ग में 7 प्रवेश द्वार हैं |इस दुर्ग में रानी पद्मिनी का महल, गोरा एवं बादल के महल, कालिका माता का मंदिर, , जयमल और फत्ता की हुवेलियां, समिधेश्वर का मंदिर (मोकलजी का मंदिर), जटा शंकर का मंदिर, कुंभश्याम का मंदिर, मीराबाई का मंदिर, तुलजा माता का मंदिर, सातबीस देवरी शृंगार चंवरी का मंदिर (जैन मंदिर) और नवलखा भण्डार स्थित हैं।विजय स्तंभ का निर्माण 1440 ई. से 1448 ई. में महाराणा कुंभा ने मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी को परास्त करने के उपलक्ष्य में करवाया था। यह 'हिन्दू देवी-देवताओं का अजायबघर' कहलाता है।किस दुर्ग में 3 साके हुए- 1303,1534 व 1568 में | |
कुंभलगढ़ का किला |
कुंभलगढ़ राजसमंद |
कुंभलगढ़ का किला संकटकाल में मेवाड़ के राजपरिवार का आश्रय स्थल रहा है।इसका प्रमुख शिल्पी मण्डन था।इसे 'कुंभलमेर या कंभलमेरु' भी कहते हैं। इस दुर्ग में 9 प्रवेश द्वार हैं। कम्भलगढ़ दुर्ग 36 किलोमीटर लम्बे परकोटे से सुरक्षित घिरा हुआ है, जो अन्तर्राष्ट्रीय रिकार्ड में दर्ज है। यह चीन की महान दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी महान् दीवार है। इसलिए इसे 'भारत की महान दीवार' भी कहा जाता है।यह दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते है। पन्नाधाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर अपने स्वामी उदयसिंह के प्राण इसी दुर्ग में बचाया यहा उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ एवं राणा प्रताप का जन्म हआ। इसके ऊपरी छोर पर राणा कुंभा का निवास है, जिसे 'कटारगढ़' कहते हैं। यह 'बादल महल' (पैलेस ऑफ क्लाउड) के नाम से प्रसिद्ध है जो महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म स्थल है। अबुल फजल के अनुसार यदि कोई पगड़ीधारी पुरुष कटारगढ़ की ओर देखे तो उसकी पगड़ी गिर जाएगी। |
तारागढ़ का किला |
बूंदी |
यह किला पर्वत की ऊँची चोटी पर स्थित होने के फलस्वरूप धरती से आकाश के तारे के समान दिखलाई पड़ने के कारण तारागढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। विदेशी पत्रकार रूडयार्ड किपलिंग के शब्दों में 'यह मानव निर्मित नहीं बाल्क फरिश्तों द्वारा बनाया लगता है।' |
नाहरगढ़ का किला |
जयपुर |
नाहरगढ़ के किले का निर्माण सवाई जयसिंह ने 1734 ई. मराठा आक्रमणों से बचाव के लिए करवाया था। यह भव्य और सुदृढ़ दुर्ग जयपुर के मुकुट के समान है। इसे सुदर्शनगढ़' भी कहते हैं। इस किले का नाहरगढ़ नाम नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा।सवाई माधोसिंह ने अपनी नौ पासवानों के नाम पर एक जैसे नौ महलों का निर्माण करवाया। |
तारागढ़ |
अजमेर |
इसे 'गढ़ बीठली' तथा 'अजयमेरु' भी कहते हैं। चौहान अजयपाल ने 1113 ई. के आसपास इस दुर्ग का निर्माण करवाया तथा अजमेर नगर की स्थापना की। पृथ्वीराज ने इस दुर्ग में कुछ महल आदि बनवाये तथा इसका नाम अपनी पत्नी ताराबाई के नाम पर तारागढ़ रख दिया। अजमेर की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला पर स्थित तारागढ़ दुर्ग को सन् 1832 में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने देखा तो उनके मुंह से निकल पड़ा- "ओह दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर। दुर्ग के भीतर संत मीरा साहब की दरगाह (मीर सैयद हुसैन खिंगसवार) एवं उसमें स्थित 'घोड़े की मजार' है। |
आमेर का किला |
जयपुर |
कोकिलदेव ने 1036 ई. में आमेर के मीणा शासक भटो से यह दुर्ग छीना था।मुगल बहादुरशाह प्रथम ने इसका नाम 'मोमिनाबाद' रखा था। |
जयगढ़ |
जयपुर |
यह 500 मीटर ऊंची पर्वतीय चोटी "ईगल पहाड़ी" स्थित है।इसका निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने करवाया । था। श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गुप्त खजाने की खोज में इस किले के भीतर हुई व्यापक खुदाई की घटना ने जयगढ़ को देश विदेश में चर्चित कर दिया। 'जयबाण' नामक तोप का निर्माण 1720 ई. में जयगढ के शस्त्र कारखाने में हआ। यह एशिया की सबसे बड़ी तोप है। जिसे एक बार चलाया गया था। इस तोप की मारक क्षमता 27 किमी है। संभवतः समूचे भारत में, यही एक दुर्ग है जहां तोप ढालने का संयंत्र लगा हआ है। जयगढ़ फोर्ट कभी भी किसी शासक द्वारा जीता नहीं गया।यह कछवाओ की संकटकालीन आश्रय स्थली रही है। |
जालौर दुर्ग सोनलगढ, कनकाचल, सुवर्णगिरि |
जालौर |
इसका निर्माण सूकड़ी नदी के किनारे गुर्जर नागभट्ट प्रथम ने करवाया था। जब अलाउद्दीन खिलजी सोमनाथ पर आक्रमण हेतु दिल्ली से गजरात जाने लगा तो जालौर के राजा कान्हड़दे ने खिलजी की सेना को अपने राज्य से होकर जाने से मना कर दिया। उस समय तो खिलजी की सेना ने अपना मार्ग बदल लिया किंतु गुजरात विजय के बाद उसने पर आक्रमण किया। कहते हैं लगभग 13 वर्ष तक घेराबंदी चली जिसे खिलजी तोड़ नहीं सका। बाद में 1311 ई. में बीक नामक दहिया राजपूत की गद्दारी से किले का पतन हुआ। |
मेहरानगढ़ |
जोधपुर |
जोधपुर नगर की उत्तरी पहाड़ी चिड़ियाटूंक पर बना हुआ है मेहरानगढ़। इसे मयूरध्वजगढ़, मोरध्वजगढ़ तथा गढ़चिंतामणी कहा जाता है।मयूराकृति का होने के कारण जोधपुर के किले को मधूरध्वजगढ़ (मोरध्वजगढ़) भी कहते हैं। इसकी स्थापना मई, 1459 को राव जोधा ने की थी जो मण्डौर के राठौड़ शासकों का वंशज था। कहा जाता है कि एक तांत्रिक अनुष्ठान के तहत इस दुर्ग की नींव में भांभी जाति का राजिया नामक एक व्यक्ति जीवित ही चुना गया था। जिस स्थान पर राजिया को गाढ़ा गया था उसके ऊपर खजाने की इमारतें बनवायी गयी। इस दुर्ग के चारों ओर 20 से 150 फुट ऊंची दीवारें बनी हुई तथा यह दीवारें 12 से 20 फुट तक चौड़ी है।यहाँमहाराजा मानसिंह द्वारा स्थापित 'पुस्तक प्रकाश' नामक पुस्तकालय आज भी कार्यरत है। किले में लम्बी दरी तक मार करने वाली अनेक प्राचीन तोपें हैं जिनमें किलकिला, शंभुबाण, गजनाखान, जमजमा, कड़क बिजली, बगस वाहन, बिच्छू बाण, नुसरत, गुब्बार, धूड़धाणीद, नागपली, मागवा, व्याधी, मारक चंग, मीर बख्श, रहस्य कला तथा गजक नामक तोपें अधिक प्रसिद्ध हैं।यहाँ शृंगार चौकी है जहां जोधपुर के राजतिलक होता था। |
मांडलगढ़ दुर्ग |
भीलवाड़ा |
यह मण्डलाकार अर्थात् गोलाई में बना हआ है इसलिए इसे माण्डलगढ़ कहते हैं। |
विजयमंदिर का किला |
बयाना-भरतपुर |
अपने निर्माता विजयपाल के नाम पर यह किला विजयमंदिर कहलाया। |
रणथम्भौर दुर्ग |
सवाईमाधोपुर |
इसका निर्माण रणथान देव चौहान ने करवाया था। यह दुर्ग विषम आकार वाली सात पहाड़ियों से घिरा ; अबुल फजल ने लिखा है कि 'अन्य सब दुर्ग नंगे हैं, जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है'। दुर्ग परिसर में हम्मीर महल, रानी महल, हम्मीर को कचहरी, सुपारी महल,, 32 खम्भों की छतरी, जोगी महल, पीर तथा भारत प्रसिद्ध गणेश मंदिर स्थित है। हम्मीर देव चौहान 1301 में अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए अपने शरणागत धर्म के लिए बलिदान हुआ। |
बाला किला |
अलवर |
जो दुर्ग कभी भी शत्र द्वारा जीते नहीं गए हो उन्हें बाला किला कहा जाता है। इस दुर्ग का निर्माण हसन खां मेवाती ने संवत् 928 में करवाया था। |
सिवाणा दुर्ग |
बाड़मेर |
बाड़मेर में स्थित छप्पन का पहाड़ नामक पर्वतीय क्षेत्र में स्थित सिवाणा का दुर्ग इतिहास प्रसिद्ध है। इसे 'अणखलों सिवाणों' दुर्ग भी कहते हैं। बाड़मेर जिले के सिवाना कस्बे में स्थित सिवाणा दुर्ग की स्थापना 954 ई. में परमार वंशीय वीरनारायण ने की थी।यह राजस्थान के दुर्गों में वर्तमान में सबसे पुराना दुर्ग है। इस पर कूमट नामक झाड़ी बहुतायत में मिलती थी जिससे इसे 'कमट दुर्ग' भी कहते हैं। जोधपुर के राठौड़ नरेशों के लिये भी यह दुर्ग विपत्ति काल में शरण स्थली के रूप में काम आता था।1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग को जीतकर उसका नाम 'खैराबाद' रख दिया। इसम दो शाके हए- प्रथम साका 1308 ई. में सातलदेव व अलाउद्दीन के संघर्ष के दौरान एवं द्वितीय साका वार कला रायमलोत व अकबर के संघर्ष के दौरान हुआ। |
दौसा का दुर्ग |
दौसा |
इसका निर्माण बड़गूर्जरी (गुर्जर-प्रतिहार) ने करवाया था। बडगुर्जरों से यह दुर्ग कच्छवाहों ने छीन लिया । |
शेरगढ |
धौलपुर |
शेरगढ़ किले का निर्माण जोधपुर के राव मालदेव ने करवाया था। जीर्णशीर्ण हुए इस दुर्ग को शेरशाह सूरी ने 1540 ई. में पुनर्निमित करवाया और तभी से इसका नाम शेरगढ पड़ गया।दूर से देखने पर टापू सा प्रतीत होता है। |
अचलगढ |
आबू , सिरोही |
जनश्रुति है महमद बेगड़ा जब अचलेश्वर के नन्दी सहित अन्य देव प्रतिमाओं को खण्डित कर विशाल पर्वतीय घाटी से उतर रहा था कर रहा था) तब दैवी प्रकोप हुआ। मधुमक्खियों का एक बड़ा दल आक्रमणकारियों पर टूट पड़ा तथा उन्हें उनके दुष्कृत्य का जा चखाया। इस घटना को स्मृति में वह स्थान आज भी 'भंवराथल' के नाम से प्रसिद्ध है। |
तनवगढ़ (त्रिभुवन गढ़) |
बयाना-भरतपुर |
मुस्लिम आधिपत्य के बाद इसका नाम इस्लामाबाद कर दिया गया था। |
कांकवाड़ी का किला |
अलवर |
यहसरिस्का वन्यजीव अभयारण्य के मध्य स्थित है।मुगल बादशाह औरंगजेब ने उत्तराधिकार के युद्ध में विजय पाने के उपरान्त अपने पराजित भाई दाराशिकोह को कांकवाडी के किले में कुछ अरसे तक कैद रखा था। |
भैंसरोड़गढ़ का किला |
चित्तौड़गढ़ |
कर्नल टॉट ने लिखा है कि इस किले का निर्माण भैंसाशाह नामक व्यापारी ने करवाया था । इसे राजस्थान का वेल्लोर कहा जाता है। |
गागरोण का किला |
झालावाड़ |
इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में डोड परमारों द्वारा करवाया गया था। उनके नाम पर यह डोडगढ़ या धूलरगढ़ कहलाया। महमूद खलजी ने इसका नाम 'मुस्तफाबाद' रखा।संत पीपा की छतरी, सूफी संत मिटठे साहब (संत हमीदददीन चिश्ता) की दरगाह तथा औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा भी इसी दुर्ग में स्थित हैं। |
कोशवर्द्धनगढ़, शेरगढ़ का किला |
बारां |
शेरगढ़ का किला कोशवर्द्धन पर्वत शिखर पर निर्मित है। इस पर्वत शिखर के नाम पर ही इसका नाम कोशवर्द्धन था। शेरशाह सूरी ने अपने मालवा अभियान (1542 ई.) के समय इस किले पर ओधकार कर इसका नाम 'शेरगढ़' रखा।'झालाओं की हवेली' इसी दुर्ग में स्थित हैं। |
भटनेर दुर्ग |
हनुमानगढ़ |
घग्घर नदी के मुहाने पर बसा भटनेर का किला हनुमानगढ़ में अवस्थित है।इसका नाम राजा भूपत ने अपने पिता की स्मृति में भटनेर रखा।किले का निर्माण पकी हुई ईटों और चूने से हुआ था।तैमर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-तैमूरी में यहाँ तक लिखा है कि उसने इतना मजबूत व सुरक्षित दुर्ग पूरे हिन्दुस्तान में कहीं नहीं देखा। अपनी विशिष्ट स्थिति और सामरिक महत्त्व के कारण भटनेर को अपने निर्माण के बाद से जितने प्रहार झेलने पडे बने भारत में शायद ही अन्य किसी दुर्ग को झेलने पड़े। महाराजा सूरतसिंह द्वारा मंगलवार के दिन किले पर अधिकार किए जाने के कारण भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रख दिया गया। |
सोनारगढ़ |
जैसलमेर |
इसे सोनागढ़ तथा सोनारगढ़ भी कहते हैं। इसका निर्माण 1155 ई. में रावल जैसल भाटी ने करवाया था।है। इसके बारे में यह कहावत प्रचलित है कि यहां पत्थर के पैर, लोहे का शरीर और काठ के घोड़े पर सवार होकर ही पहुंचा जा सकता है। यह गहरे पीले रंग के बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित है जो बिना चूने के एक के ऊपर एक पत्थर रखकर बनाया गया है । जब सुबह-शाम सूर्य की किरणें इस पर पड़ती है तो यह वाकई में सोने के समान चमकता है। यहाँ ‘ढ़ाई साके' हुए। है। वर्तमान में राजस्थान में दो दुर्ग ही ऐसे हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोग निवास करते (लिविंग फोर्ट) हैं उनमें से एक चित्तौड़ का दुर्ग है तथा दूसरा जैसलमेर का दुर्ग है। |
पोकरण दुर्ग |
जैसलमेर |
पोकरण में लाल पत्थरों से निर्मित इस दुर्ग का निर्माण सन् 1550 में राव मालदेव ने करवाया था। |
नागौर दुर्ग (अहिछत्रपुर दुर्ग) |
नागौर |
इसका निर्माण नाग राजाओं के समय में पाँचवी शताब्दी से पूर्व आरंभ हुआ था इसे 'नागदर्ग' भी कहते हैं। नागौर के किले के स्थापत्य की विशेषता यह है कि किले के बाहर से चलाये गये तोपों के गोले किले के महलों को क्षति पहुँचाये बिना ही ऊपर से निकल जाते थे। |
माधोराजपुरा का किला |
जयपुर |
इस दुर्ग का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने मराठा विजय के उपलक्ष्य में करवाया था। अमीर खां ने नरुकों की जागीर में फागी के पास लदाणा व लावा के सामंतों पर हमला कर दिया था। भारतसिंह लदाना व कामदार शंभू धाभाई अमीर खां की दो बेगमों व बच्चों को उठाकर माधोराजपुरा के किले में ले आए थे। इस पर अमीर खां ने बड़ी सेना के साथ हमला कर किले पर एक साल तक घेरा डाले रखा। आखिर में अमार खां ने 21 नवम्बर, 1816 को सुलह कर घेरा छोड़ा। खास बात यह भी रही कि अमीर खां की दोनों बेगमों को लावा व लदाना के नरुका राजपूतों ने बहन बनाकर किले में रखा था। |
चूरू का किला |
चूरू |
1857 ई. के विद्रोह में ठाकुर शिवसिंह ने अंग्रेजों का विरोध किया। इस पर अग्रजा : बीकानेर राज्य की सेना लेकर चूरू दुर्ग पर आक्रमण किया। अंग्रेजों ने दुर्ग को चारों ओर से घेर कर तोपों से गोला के बरसात कर दी। जवाब में दुर्ग से भी गोले बरसाये गये। जब दुर्ग में तोप के गोले समाप्त होने लगे तो लहारों ने नये गाल बनाये किंतु कुछ समय बाद गोले बनाने के लिये शीशा समाप्त हो गया। इस पर सेठ साहकारों और जनसामान्य ने अप घरों से चाँदी लाकर ठाकुर को समर्पित की। लुहारों और सुनारों ने चाँदी के गोले बनाये। जब तोपों से छटे चांदी क शत्र सेना पर जाकर गिरे तो शत्रु सेना हैरान रह गयी और उसने जनता की भावनाओं का आदर करते हुए दुर्ग से घेरा हटा लिया। |
चौमूं का किला |
जयपुर |
चौमूं का किला चौमुँहागढ कहलाता है । ठाकुर रघुनाथसिह के शासनकाल में इसे रघुनाथगढ़ भी कहा गया।चौमूं के किले को धाराधारगढ़ भी कहते हैं। हैं। विशेषकर देवी निवास तो जयपुर के एलबर्ट हॉल की ति मालम होता है। |
अकबर का दुर्ग |
अजमेर |
अकबर ने अजमेर नगर के मध्य में 1570 ई. में गजरात विजय के उपलक्ष्य में एक दर्ग का निर्माण करवाया। इसे . अकबर का दौलतखाना' और 'अकबर की मैगजीन' भी कहते हैं। यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जो मुस्लिम दुर्ग स्थापत्य पद्धति से बनवाया गया है। 1576 ई. में महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध की योजना को भी अन्तिम रूप एसी किले में दिया गया था।अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार (मैग्जीन) बना लिया! |
लालगढ़ दुर्ग / जूनागढ़ |
बीकानेर |
दुर्ग की प्राचीर एवं अधिकतर निर्माण कार्य लाल पत्थरों से हुआ है इसलिए इसे लालगढ़ भी कहा जाता है। |
लोहागढ़ |
भरतपुर |
लोहागढ़ 1733 ई. में जाट राजा सूरजमल द्वारा अपने पिता के समय बनवाया गया था। इसकी प्राचीर के बाहर 100 फुट चौड़ी और 60 फुट गहरी खाई है। इस खाई के बाहर मिट्टी की एक ऊंची प्राचीर है। इस प्रकार यह दोहरी प्राचीर से घिरा हुआ है। खाई पर दो पुल बनाये गये हैं। इन पुलों के ऊपर गोपालगढ़ की तरफ बना हुआ स्वाजा अष्ट धातुओं के मिश्रण से निर्मित है। यह दरवाजा महाराजा जवा. सिंह 1765 ई. में मुगलों के शाही खजाने की सूट के समय लाल किले से उतार कर लाया था। जनश्रुति है कि यह अष्ट धातु द्वार पहले चित्तौड़गढ़ दुर्ग में लगा हुआ पा जिसे अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली ले गया था। यह दुर्ग मैदानी दुर्गा की विश्व का पहले नम्बर का दुर्ग है। भरतपुर के शासक रणजीतसिंह के शत्रु जसवंतराव होल्कर को अपने यहां शरण दी, जिससे उसे अंग्रेजों का कोपभाजन बनाना पड़ा। अंग्रेज सेना ने 1805 ई. की जनवरी से लेकर अप्रैल माह तक पाँच बार भरतपुर दुर्ग पर जोरदार हमले किये गये। ब्रिटिश तोपों, गोले बरसाये वे या तो मिट्टी की बाह्य प्राचीर में धंस गये। उनकी लाख कोशिश के बावजूद भी किले का पतन ना सका। फलतः अंग्रेजों को संधि करनी पडी। |