राजस्थान की लोकदेवियाँ Rajasthan ki lok deviyan

राजस्थान की लोकदेवियाँ Rajasthan ki lok deviyan

राजस्थान की लोकदेवियाँ   Rajasthan ki lok deviyan ---

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लोक देवी   
   
स्थान   
   
विवरण   
   
शीतला माता    
   
जोधपुर एवं जयपुर    
   
शीतला माता को सैढल माता के नाम से भी जाना जाता है। देवी जी का मुख्य मंदिर जोधपुर नगर के कागा क्षेत्र में स्थित है। मान्यता है कि लगभग 200 साल पहले महाराजा विजय सिंह के पुत्र सरदार सिंह की मृत्यु माता निकल जाने के कारण हो गई थी। इससे दुखी होकर राजा ने शीतला देवी जी की मूर्ति दुर्ग से हटाकर पहाड़ों में    फिंकवा   दी, जिससे यह मूर्ति खंडित हो गई। इसके बाद इस प्रतिमा को कांधा क्षेत्र में स्थापित किया गया। यह एकमात्र लोक देवी है जिसकी खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है। जयपुर के सवाई माधोसिंह ने भी चाकसू की    शील   डूंगरी   पर   शीतला   देवी   जी   का   मंदिर   बनवाया।इन   देवी का वाहन गधा होता है तथा पुजारी कुम्हार होते हैं। यह देवी बच्चों की संरक्षिका देवी है तथा चेचक विरोधी देवी के रूप में पूजी    जाती   है।   
   
जमवाय माता   
   
जमवारामगढ़ जयपुर   
   
जमवाय माता का    पौराणिक   नाम   जामवंती   है।   कछवाहा शासक दूल्हेराय ने शत्रु से पराजित होकर इन देवी की आराधना की तब देवी जी ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए। देवी जी के आशीर्वाद से दूल्हे राय ने शत्रु पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। फिर कुलदेवी जमवाय माता का मंदिर बनवाया, जो जमवारामगढ़, जयपुर में स्थित है। यह माता कछवाहा वंश की कुलदेवी है।   
   
करणी माता   
   
देशनोक बीकानेर   
   
करणी माता बीकानेर के राठौड़ों की कुलदेवी है। इन्हें चूहो वाली देवी भी कहा जाता है। इनके आशीर्वाद से ही राव बीका ने बीकानेर की स्थापना की। इनका जन्म सुआप गांव में चारण जाति के श्री मेहा जी के घर हुआ। इनका मंदिर देशनोक बीकानेर में स्थित है। इस मंदिर में चूहे बहुतायत में पाए जाते हैं। इन्हें काबा कहते हैं। इनके पुजारी चारण होते हैं। इनके गोद लिए हुए पुत्र की मृत्यु कोलायत झील में डूबने से हुई थी। इस कारण चारण जाति के लोग कोलायत मेले में नहीं जाते हैं।दोनों नवरात्रों को इनका मेला भरता है।   
   
कैला देवी   
   
करौली    
कैला देवी माता करौली के यदु वंश की कुलदेवी है । मान्यता है कि जब कंस ने वासुदेव और देवकी की आठवीं कन्या संतान को शिला पर पटक कर मारना चाहा था वही नवजात कन्या जोगमाया से कैला देवी बनकर प्रकट हुई । उनके भक्ति इनकी आराधना में प्रसिद्ध लांगुरिया गीत गाते हैं । केला देवी जी का लक्ष्मी मेला चैत्र शुक्ल अष्टमी को भरता है ।

जीण माता जी

रेवासा सीकर
जीण माता जी चौहानों की कुलदेवी है । इनका पूरा नाम जयंती माला है । उनका मंदिर रेवासा सीकर मैं स्थित है जहां उनकी अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है । के अनुसार उन्होंने अपने भाभी के व्यंग्य बाणो से व्यथित होकर रेवासा गांव में साड़ी पर तपस्या की । उनके भाई हर्ष ने इन्हें मनाने की कोशिश की लेकिन यह नहीं मानी तब हर्ष भी पास की पहाड़ी तपस्या करने लगे । कालांतर में जीण माता जी मां दुर्गा के स्वरूप में तथा हर भैरव के स्वरूप में प्रसिद्ध हुए । राजस्थानी लोक साहित्य में इनका गीत सबसे लंबा है । इस गीत को कनफटे जोगी केसरिया कपड़े पहन कर जाते हैं ।
   
रानी सती    
   
झुंझुनू   
रानी सती जी का नाम नारायण बाई था। इनका विवाह तनधन दास से हुआ था । इनको दादीजी भी कहते हैं । भाद्रपद कृष्णा अमावस्या को रानी सती जी का मेला भरता है ।
   
सचिया माता   
   
ओसिया जोधपुर   
   
उनको सच्चीका माता भी कहते हैं।ये ओसवालों वालों की कुलदेवी है।    
   
सुंधा माता   
   
जालौर   
   
जालौर के सुगंधाद्रि पर्वत पर सुंधा माता जी का मंदिर बना हुआ है।   
   
सुगाली    माताजी   
   
आउवा    पाली   
   
सन् 1857 की क्रांति की कुलदेवी है। इनके 54 हाथ तथा 10 सिर है।   
   
शिला देवी जी   
   
आमेर जयपुर   
   
इन्हें अन्नपूर्णा माता की करते हैं। जय कछवाहा राजवंश की आराध्य देवी है ,    इनकी   मूर्ति   को   महाराजा   मानसिंह   प्रथम   पूर्वी   बंगाल   के   राजा   केदार   के   यहां   से   लाए   थे।   
   
सकराय माता   
   
खंडेला सीकर   
   
यह देवी खंडेलवालों की कुलदेवी है।अकाल पीड़ित लोगों को बचाने के लिए इन्होंने साग सब्जी कंद फल आदि उत्पन्न किए थे अतः इन्हें शाकंभरी देवी भी कहते हैं।   
   
ब्राह्मणी माता   
   
बांरा   
   
विश्व का एकमात्र मंदिर जहां देवी जी की पीठ की पूजा की जाती है। यहां गधों का मेला भी लगता है।   
   
आई माता   
   
बिलाड़ा    जोधपुर   
   
इनका मंदिर बिलाड़ा    जोधपुर   में   है।   यह   रामदेव   जी   की   शिष्या   थी   । इनके   मंदिर   में   अखंड   ज्योति   प्रज्वलित   रहती   है,   जिससे केसर टपकती रहती है।    
   
आशापुरी माताजी   
   
जालौर   
   
इनको महोदरी माता (बड़े उदर वाली माता    ) भी   कहते   हैं|   यह   माताजी   जालोर   के   सोनगरा   चौहानों   की   कुलदेवी   है।      
   
हिंगलाज माता   
   
जैसलमेर   
   
यह माता जी जैसलमेर के भाटी वंश की कुलदेवी है। जी माताजी तथा है जल राशि को तीन चुल्लू में भरने तथा राक्षसों के संहार के लिए जानी जाती है।    
   
कैवाय माता   
   
नागौर   
   
   
   
अंबिका माता   
   
जगत उदयपुर   
   
यह मंदिर मेवाड़ का खजुराहो के रूप में प्रसिद्ध है   
   
नारायणी माता   
   
राजगढ़ तहसील अलवर   
   
यह माता नाइयों की कुलदेवी है। मान्यता के    अनुसार   विवाह   के   बाद   यह   अपने   पति   के   साथ   ससुराल   जा   रही   थी   तभी   उन्होंने   पर्वत तलहटी में विश्राम किया। जहां    इनके   पति   को   सांप   ने   काटा जिससे उनकी मृत्यु हो गई। तब इन्होने एक मीणा चरवाहा की सहायता से लकड़िया एकत्रित की तथा पति के साथ ही सती हो गई। इनके मंदिर में पुजारी मीणा जाति के लोग होते हैं। वर्तमान में नाई तथा    मीणो   में   पूजा   करने   हेतु   विवाद   चल   रहा   है।      
   
घेवर माता   
   
राजसमंद   
   
जब राजसमंद जी की पाल बन रही थी तो एक पवित्र स्त्री की खोज की गई रिश्ते बाएं गाल पर आंख के नीचे काला तिल हो । तब घेवर बाई को लाया गया और उसी के हाथ से राजसमंद पाल का पहला पत्थर रखा गया। जेवर भाई उसी स्थान पर अपने पति के    बिना   सती   हो   गई।      
   
शाकंभरी माता जी   
   
सांभर जयपुर   
   
यह चौहानों की कुलदेवी है।   
   
त्रिपुरासुंदरी / तुरतई माता जी    
   
तलवाड़ा बांसवाड़ा   
   
इनदेवी जी की 18 भुजाये    हैं|   
   
तनोटिया माता    
   
तनोट जैसलमेर   
   
थार की वैष्णो देवी    नाम   से   प्रसिद्ध   है।   सेना   के   जवान   उनकी   पूजा   करते   हैं।      
   
चौथ माता   
   
चौथ का बरवाड़ा सवाई माधोपुर   
   
   
   
ज्वाला माता   
   
जोबनेर जयपुर   
   
यह माता खंगारोतों की कुलदेवी है|    
   
पोकरण दुर्ग    
   
जैसलमेर   
   
पोकरण में लाल पत्थरों से निर्मित इस दुर्ग का निर्माण सन् 1550 में राव मालदेव ने करवाया था।   
   
नागौर दुर्ग (अहिछत्रपुर दुर्ग)   
   
नागौर    
   
इसका निर्माण नाग राजाओं के समय में पाँचवी शताब्दी से पूर्व आरंभ हुआ था   इसे 'नागदर्ग' भी कहते हैं। नागौर के किले के स्थापत्य की विशेषता   यह है कि किले के बाहर से चलाये गये तोपों के गोले किले के महलों को क्षति पहुँचाये   बिना ही ऊपर से निकल जाते थे।    
   
माधोराजपुरा का किला   
   
जयपुर   
   
इस दुर्ग का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने मराठा विजय   के उपलक्ष्य में करवाया था। अमीर खां ने नरुकों की जागीर में फागी के पास लदाणा व   लावा के सामंतों पर हमला कर दिया था। भारतसिंह लदाना व कामदार शंभू धाभाई अमीर खां   की दो बेगमों व बच्चों को उठाकर माधोराजपुरा के किले में ले आए थे।
   
इस पर अमीर खां ने बड़ी सेना के साथ हमला कर किले पर एक साल तक घेरा डाले   रखा। आखिर में अमार खां ने 21 नवम्बर, 1816 को सुलह कर घेरा छोड़ा। खास बात यह भी रही कि अमीर खां की दोनों बेगमों को   लावा व लदाना के नरुका राजपूतों ने बहन बनाकर किले में रखा था।    
   
चूरू का किला    
   
चूरू    
   
1857 ई. के विद्रोह में ठाकुर शिवसिंह ने अंग्रेजों का विरोध किया। इस पर अग्रजा : बीकानेर राज्य की सेना लेकर चूरू दुर्ग पर आक्रमण   किया। अंग्रेजों ने दुर्ग को चारों ओर से घेर कर तोपों से गोला के बरसात कर दी। जवाब   में दुर्ग से भी गोले बरसाये गये। जब दुर्ग में तोप के गोले समाप्त होने लगे तो लहारों   ने नये गाल बनाये किंतु कुछ समय बाद गोले बनाने के लिये शीशा समाप्त हो गया। इस पर   सेठ साहकारों और जनसामान्य ने अप घरों से चाँदी लाकर ठाकुर को समर्पित की। लुहारों   और सुनारों ने चाँदी के गोले बनाये। जब तोपों से छटे चांदी क शत्र सेना पर जाकर गिरे   तो शत्रु सेना हैरान रह गयी और उसने जनता की भावनाओं का आदर करते हुए दुर्ग से घेरा   हटा लिया।    
   
चौमूं का किला    
   
जयपुर    
   
चौमूं का किला चौमुँहागढ कहलाता है । ठाकुर रघुनाथसिह   के शासनकाल में इसे रघुनाथगढ़ भी कहा गया।चौमूं के किले को धाराधारगढ़ भी कहते हैं।   हैं। विशेषकर देवी निवास तो जयपुर के एलबर्ट हॉल की ति मालम होता है।    
   
अकबर का दुर्ग    
   
अजमेर    
   
अकबर ने अजमेर नगर के मध्य में 1570 ई. में गजरात विजय के उपलक्ष्य   में एक दर्ग का निर्माण करवाया। इसे . अकबर का दौलतखाना' और 'अकबर की मैगजीन' भी कहते हैं। यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जो   मुस्लिम दुर्ग स्थापत्य पद्धति से बनवाया गया है। 1576 ई. में महाराणा प्रताप   के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध की योजना को भी अन्तिम रूप एसी किले में दिया गया था।अंग्रेजों   ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार (मैग्जीन) बना लिया!   
   
लालगढ़ दुर्ग / जूनागढ़   
   
बीकानेर   
   
दुर्ग की प्राचीर एवं अधिकतर निर्माण कार्य लाल पत्थरों से हुआ है इसलिए   इसे लालगढ़ भी कहा जाता है।   
   
लोहागढ़   
   
भरतपुर   
   
लोहागढ़ 1733 ई. में जाट राजा सूरजमल   द्वारा अपने पिता के समय बनवाया गया था। इसकी प्राचीर के बाहर 100 फुट चौड़ी और 60 फुट गहरी खाई है। इस खाई के बाहर मिट्टी की एक ऊंची प्राचीर है। इस प्रकार   यह दोहरी प्राचीर से घिरा हुआ है। खाई पर दो पुल बनाये गये हैं। इन पुलों के ऊपर   गोपालगढ़ की तरफ बना हुआ स्वाजा अष्ट धातुओं के मिश्रण से निर्मित है। यह दरवाजा   महाराजा जवा. सिंह 1765 ई. में मुगलों के शाही खजाने की सूट के समय लाल किले से उतार कर लाया था। जनश्रुति   है कि यह अष्ट धातु द्वार पहले चित्तौड़गढ़ दुर्ग में लगा हुआ पा जिसे अलाउद्दीन   खिलजी दिल्ली ले गया था। यह दुर्ग मैदानी दुर्गा की विश्व का पहले नम्बर का दुर्ग   है। भरतपुर के शासक रणजीतसिंह के शत्रु जसवंतराव होल्कर को अपने यहां शरण दी, जिससे उसे अंग्रेजों का कोपभाजन बनाना पड़ा। अंग्रेज   सेना ने 1805 ई. की जनवरी से लेकर अप्रैल माह तक पाँच बार भरतपुर   दुर्ग पर जोरदार हमले किये गये। ब्रिटिश तोपों, गोले बरसाये वे या तो मिट्टी की बाह्य प्राचीर में धंस गये। उनकी लाख कोशिश   के बावजूद भी किले का पतन ना सका। फलतः अंग्रेजों को संधि करनी पडी।    

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Hey there! myself Rahul Kumawat . I post articles about psychology, Sanskrit, Hindi literature, grammar and Rajasthan GK ..

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